Sunday, 25 June 2017

अब भारत अफगान दोस्ती के प्रतीक सलमा बांध पर आतंकी हमला

10 अफगान पुलिस वालों की हत्या 
Courtesy Photo: Dabang Duniya 
FIB मीडिया इंटरनेशनल डेस्क की ख़ास रिपोर्ट 
     आतंक के निशाने पर पूरी दुनिया है। आतंकी संगठनों की सही सही संख्या का पता लगाना भी मुश्किल है। अब नया हमला हुआ है सलमा बांध पर। अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकियों ने सलमा बांध पर हमला करके 10 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी। गौरतलब है कि सलमा बांध को भारत सरकार की मदद से बनाया गया था, जिसे 'अफगानिस्तान-इंडिया फ्रेंडशिप डैम' भी कहा जाता है। इसी बांध के चेकपोस्ट पर तालीबानी आतंकियों ने हमला किया और 10 अफगानी पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी।
     तालिबानी आतंकियों ने शनिवार की देर रात ये हमला बोला था। इस हमले में कम से कम 4 अन्य पुलिसकर्मी भी घायल हुए हैं। 'अफगानिस्तान-इंडिया फ्रेंडशिप डैम' हेरात प्रांत में है, जिसे भारत की मदद से बनाया गया है और अफगानिस्तान की सरकार ने इसे अफगानिस्तानियों को दिया भारतीय तोहफा माना है। इस सौगात को निशाना बनाना साफ़ ज़ाहिर करता है कि  आतंकी संगठन इस दोस्ती से परेशान हैं और इसके खिलाफ हैं। 
        इस मामले में सुरक्षा अधिकारियों द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक भारी हथियारों से लैस तालिबानी आतंकियों ने चाश्त जिले में बने सलमा बांध के साथ के चेकपोस्ट पर हमला किया। हमला बहुत ही अचानक था।  सम्भलने का मौका भी नहीं था। तालिबानी आतंकी पुलिसकर्मियों की हत्या के बाद फरार होने में भी सफल रहे। इस दौरान दोनों ही तरफ से जोरदार गोलीबारी हुई, पर तालिबानी आतंकी अफगानी सुरक्षाबलों पर भारी पड़े। अफगानिस्तान में भारत के राजदूत मनप्रीत वोहरा ने भी इसे तालिबानी हमला बताया है। इस हमले के बाद सारी रणनीति पर दोबारा विचार आवश्यक लग रहा है। 
इसके साथ ही तालिबान ने कराची एयरपोर्ट हमले की जिम्मेदारी भी स्वीकार की है। 
उल्लेखनीय है कि सलमा बांध यानि 'अफगानिस्तान-इंडिया फ्रेंडशिप डैम'  का जून 2016 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अफगानी राष्ट्रपति अशरफ गनी ने उद्घाटन किया था। ये प्रोजेक्ट 1700 करोड़ रुपयों में बना है, जो हेरात प्रांत में रणनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण जगह पर है। इस बांध को चिस्ती शरीफ नदी पर बनाया गया है, जिससे 42 मेगावॉट बिजली का उत्पादन तो होता ही है, साथ ही 75 हजार हेक्टेयर खेती की जमीन पर सिंचाई भी होनी है। इस से वहां के विकास की गति को पंख लग गए थे। 
      यह भी बता दें कि अफगानिस्तान में साल 2014 से अमेरिकी फौजों के वापस लौटने और अपनी भूमिका को अफगानी सुरक्षाबलों के सहयोग और आतंकवाद विरोधी अभियानों तक सीमित करने के बाद तालिबान तेजी से अपने पैर पसार रहा है। अब देखना यह है कि इस मामले पर सभी देश एकजुट हो कर कोई कदम उठाते है या नहीं?

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