Updated on June 2nd 2017 at 1:40 PM
FIB मीडिया इस मामले में पहल करने को तैयार-डा. भारत
FIB मीडिया इस मामले में पहल करने को तैयार-डा. भारत
लुधियाना: 1 जून 2017: (FIB मीडिया ब्यूरो)::
फेसबुक पर महीपाल साथी ने आदित्य कमल जी की एक ग़ज़ल पोस्ट की है। इसका मतलााअ है:
आंकड़ों से खेलना, उनका शुगल मशहूर है,
ज़िंदगी अपनी, मगर उन आंकड़ों से दूर है।
आंकड़ों से खेलना, उनका शुगल मशहूर है,
ज़िंदगी अपनी, मगर उन आंकड़ों से दूर है।
इन पंक्तियों से याद आई लुधियाना के सर्कट हाऊस में हुई पत्रकारों की विशेष बैठक। भीड़ बहुत थी। उत्साह भी बहुत था। जोश भी बहुत था। संकल्प भी ज़ोरदार था और इरादा भी मज़बूत। इस बैठक में मुख्य मांग थी प्रेस क्लब की। वास्तव में यह मांग नहीं पत्रकारों का अधिकार है। इतनी बड़ी संख्या में पत्रकार मांग कर रहे हैं और सरकार भी सैद्धांतिक तौर पैर प्रेस क्लब देने को तैयार है। इसके बावजूद देरी क्यों हो रही है? मामला हर बार खटाई में क्यों पड़ जाता है? ओशो कहते हैं इंसान जिस चीज़ के काबिल हो जाता है वह उसे तत्क्षण मिल जाती है। एक पल की भी देरी नहीं होती। यह प्रकृति का नियम है। हम हर बार प्रेस क्लब पाते पाते फिर खो बैठते हैं तो समझना होगा कि आखिर गड़बड़ कहां है? हमारे साथ ऐसा क्यों हो रहा है? हर बार दिल्ली दूर क्यों हो जाती है? हर क्षेत्र में लुधियाना जैसा बड़ा स्टेशन एक प्रमुख मीडिया सेंटर बनने के बावजुद भी अभी तक प्रेस क्लब से वंचित क्यों? आदित्य कमल अपनी ग़ज़ल के आखिरी शेयर में कहते हैं:
वहाँ जनपथ पर खड़ा हिंदोस्ताँ है पूछता,
भाई साहब, यहाँ से दिल्ली औ' कितनी दूर है?
भाई साहब, यहाँ से दिल्ली औ' कितनी दूर है?
मैं क्षमा चाहता हूँ पर मुझे सर्कट हाऊस में हुई इस मीटिंग की स्थिति भी कुछ इसी तरह की लगी। मीटिंग में मौजूद पत्रकारों की संख्या बहुत बड़ी होने के बावजूद बहुत से प्रमुख लोग गैर हाज़िर क्यों थे? बहुत से वरिष्ठ मीडिया कर्मी कुर्सी न होने के कारण खड़े होने को मजबूर थे।
अगर हम सभी अपना अंतर्मन टटोलेंगे तो समस्या का सही रूप भी नज़र आएगा और समस्या का हल भी मिलेगा। अतीत के संघर्षों का एक बार फिर अवलोकन करना होगा। गैरहाज़िर लोगों के दिल और दिमाग में क्या है इसका सच्चे मन से पता लगाना होगा। अगर कुर्सी या पद इस मामले में रुकावट डालते हैं तो सभी को आगे आ कर स्पष्ट करना हो गए की हम को कोई भी पद नहीं चाहिए। जब सभी सदस्य पदों के लालच ऐ मुक्त हो कर सामने आ जायेंगे तो सबसे अधिक निःस्वार्थ लोगों की टीम का चुनाव आसानी से हो जायेगा। वो कहते हैं न.... दिल मिले या न मिले--हाथ मिलाते रहिये....बहुत अछहि इसमें लेकिन इस खूबसूरत अंदाज़ और मनमोहक औपचारिकता से कुछ समय के लिए बचते हुए दिल मिलाने की तरफ भी ध्यान देना ज़रूरी है।
कभी किसी शायर ने कहा था-
खुदा मुझको ऐसी खुदाई न दे !
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे।
कहीं इस मामले में भी ऐसा ही कुछ तो नहीं हो रहा? जिस दिन हम सभी का सम्मान करना सीख जायेंगे। सभी को साथ ले कर चलना सीख जायेंगे। सभी के मन एक दुसरे के सामने खुल जायेंगे उस दिन होगी सच्ची एकता। उस दिन प्रेस क्लब जैसी सभी सुविधाएँ आपके पीछे पीछे होंगीं। अगर आप सभी ने उचित समझा तो FIB मीडिया इस मामले में पहल करने को तैयार है। इस संबंध में हमारे पास एक ठोस योजना है। यह योजना समस्या का पूरा अध्यन करने के बाद बनाई गयी है। वक़्त आने पर इसे सभी के आमने रखा भी जायेगा। फिलहाल दिल से दिल मिलाना ज़रूरी है। अगर किसी के दिल में भी किसे के भी प्रति नफरत या साज़िश की कोई चिंगारी है तो उसे वहां से हटाना समय की सबसे पहली ज़रूरत है। मीडिया लड़ता रहे, गुटबंदियों में घिरा रहे इसका फायदा किसकोहो सकता है यह सोचना हम सभी को सहीं राह पर ले जायेगा।
Very nice hum sabhi reporters ko ek hona hoga fib ne sahi likha hai
ReplyDeleteI agree with you
Reporter Joshi Ahmedgarh