क्या देश का लोकतंत्र , न्यायतंत्र विधायिका जैसे वास्तव में बाज़ारू हो गए हैं ?.
Dr. Bharat :⇒ F.I.B. Media Service
मौजूदा समय में भारत देश के लिए समय बहुत ही भयानक होने वाला है ,पहले कार्यपालिका , विधायिका सभी पालिका पालकों पर भ्रष्टाचार क्या बाजार में बिकने वाली गिरी से गिरी वस्तुवों जैसे का इल्जाम लग चुके हैं पर न्याय के लिए खुद न्यायाल शरेआम बाजार चीख कर दुहाई देने लगे तो सिवा जंगल राज के इलावा कुछ नहीं बचा है, ऐसी प्रस्थिति लाने वाला है कौन ,कौन है इन सबका जिम्मेदार
न्याय प्रणाली पर पिछले दसनो साल से न्याधीशों और न्यायालों पर तरह के इलज़ाम लगते रहे हैं , अपने ही देश के अलावा जब कई अन्य विदेशी मुल्कों में भी टिप्पड़ी सुनने के बाद इन सबकी गंभीरता पर विचार करने के बाद हमने 8 आठ वर्ष पूर्व एक जिम्मेदार नागरिक और क्राइम फ्री इंडिया ब्यूरो CFIB, के एक प्रांतीय डायरेक्टर एक मैनेजिंग एडीटर की हाशियत से देश के सर्वोच्च पदपर आसीन महामहिम राष्ट्रपति जी एंव न्यायमंत्रलय को विशेष पत्र भेजते हुए न्यायलय की गिरती शाख और भ्रस्ट जजों न्यायधीशों पर अविलम्ब उचित एंव आवश्यक कदम उठाने की मांग की। जिसके जवाब में माननीय राष्ट्रपति एंव न्याय मंत्रालय भारत सरकार की तरफ से हमें पत्र भेजते हुए सुचना दी गयी की आपके भेजे गए पत्र के विषय पर त्वरित एंव उचित करवाई के लिए जल्द कारगर कदम उठाये जाने के लिए अग्रेषित कर दिया गया है। बाद में जो सुचना जानकारी मिली की देश के 305 जजों के खिलाफ जाँच की करवाई चल रही है। 75 जजों को विभागीय जाँच के बाद सेवनृविति दे दी गयी। 38 जजों पर पेनाल्टी बड़ा दंड दिया गया। और 17 जजों को दण्डात्मक कार्रवाई कर उन्हें पद से हटा दिया गया। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट के अंदर भी बहुत कुछ सुनने को मिला।
इस सन्दर्भ में मौजूदा हालत को देखते हुए एक जागरूक नागरिक यही सवाल कर सकता है कि मेरा देश , मेरा भारत, मेरा हिंदुस्तान कहाँ है, कहाँ ढूंढा जाये इसे कोई तो बतादे। राष्ट्रवाद का गला घोंटकर कहीं स्वार्थवाद , कहीं जातिवाद ,कहीं अलगाववाद , कहीं क्षेत्रवाद ,कहीं सम्प्रदायवाद , इन सबसे खतरनाक वाद वाद में राजनीतिवाद और षडयंत्रवाद ने पुरे देश में पैर पसार कर अपनी जड़ें जमा चूका है । धर्महित ,समाजहित , देशहित की बात और काम करने वालों को जहाँ सरकारी तंत्र का क़ानूनी शिकंजा की डर की वजह से दर दर की ठोकरे खाने को मजबूर होना पड़ रहा है। वहीँ न्याय पाने के लिए आम जनता की कौन कहे खुद न्यायधीश ही न्याय के लिए सार्वजानिक गुहार करे ?धिक्कार है ऐसी सरकारों पर धिक्कार है है उन लोगों को जिन जिन लोगों की वजह से आज खुद न्याय ही न्याय की लिए फ़रियाद करे। यहाँ पर मशहूर कवि लेखक प्रदीप जी की वह पंक्ति याद आती है की डस लिया सारे देश को जहरी नागों ने , घर को लगादी आग घर के चिरागों ने।
कभी ग्राम पंचायत में भी पंचायत शत प्रतिशत सही पंचायती फैशला होता था , उसके बाद रजवाड़ों का फैशला फिर विलायती अंग्रेजी अदालतों का फैसला , फिर आजाद भारत के शरुआती फैशला ठीक थे। लेकिन धीरे धीरे अदालतों पर गलत फैसला और भ्रष्टाचार जैसे अनेकों अनियमितावों जैसे संगीन आरोप लगने से जैसी किरकिरी हो रही है वह आनेवाले समय में देश के लिए घातक है।
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