Sunday, 27 May 2018

न्याय के लिए दरदर भटकते लोग ? जाएँ तो जाये कहाँ।


कौन है जिम्मेदार , कार्यपालिका , विधायिका या खुद न्यायपालिका ?
F.I.B. : - Media Information Service

इस महत्व पूर्ण लेख पर हर सच्चे भारतीय नागरिकों को गंभीरता के साथ विचार कर पुरे देश में जनजागृति  लाना ही समय की मांग है, देर  हानिकारक होगा । 
मानव अधिकार सुरक्षा परिषद् ( H.R.P.C.)द्वारा प्राप्त सुचना के मुताबिक हर रोज अदालतों में करीब 14 करोड़ लोग पेशी के लिए घरो से निकलते हैं / सुबह से शाम तक अदालतों में  भ्रष्टाचार और धक्के सहते हैं / कभी वकीलों के पीछे तारीख पूछना, कभी उनके मुंशियो के पास डाक्यूमेंट्स के लिए परेशान होना, कभी नक़ल, सम्मन के नाम पर कर्मचारियों को रिश्वत के नाम पर भ्रष्टाचार सहना यह रोजाना के हालात हैं / यहाँ तक कि जज साहिब द्वारा भी आम जनता को बहुत बार  डांट फटकार सहनी पड़ती है / अगर अदालतों में एक आदमी का खर्चा करीब 100 रूपये भी लगाया जाये तो इसका हिसाब 1400 करोड़ रूपये प्रतिदिन बैठता है / यह 1400 करोड़ रूपये देश का नुक्सान है / इसमें रिश्वत, अवकाश, जजों और कर्मचारियों की सैलरी को जोड़ा नही गया है /
अदालतों के लेट लतीफी और भ्रष्टाचार के चलते डर के मारे कई लोग तो अदालत का नाम सुनकर ही डर जाते हैं / इन्साफ समय से न मिलने के कारण देश भर में आतंकवाद, नक्सलवाद,जुर्म और भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है / हमारा मानना है इन्ही सब कारणों से लोग अदालतों में जाने से ज्यादा रिश्वत देकर या गुंडों से अपना काम करवाना  ज्यादा बेहतर समझते हैं /
हिंदुस्तान में 90 प्रतिशत जनता को यह भी नही पता कि वो खुद अपने केस की पैरवी कर सकते हैं / अपने केस की पैरवी के लिए उन्हें वकील की जरूरत भी नही है / अफ़सोस है कि जो लोग अपना केस खुद लड़ते हैं उनको जजों द्वारा उलझाया और डराया जाता है / जिससे जनता का विश्वास धीरे धीरे अदालतों और जजों पर से उठता जा रहा है /
करीब हर पहले और तीसरे शनिवार को वकीलों द्वारा हड़ताल रहती है / जिसके कारण लोग तकलीफ सहते है और बिना इन्साफ के ही तारीख लेकर घर चले जाते हैं / इसका जिम्मेदार कौन है ? जज साहिबान के अदालतों में बैठने के बावजूद वकील केसेस में हाजिर नही होते / जो कि सीधा सीधा अदालतों की अवमानना और आम जनता के साथ अन्याय है /
कुछ जज साहिबान द्वारा अदालतों के क्लास तीन और चार कर्मचारियों से भी अन्याय पूर्ण व्यवहार और अत्याचार किया जाता है / जिसके कारण कई कर्मचारियों ने ख़ुदकुशी भी कर ली / परन्तु जज साहिबान पर कोई ठोस कार्यवाही नही होती / जज साहिबान द्वारा क्लास चार के कर्मचारियों से अपने घरो में गैर कानूनी तरीके से प्राइवेट काम लिए जाते हैं जैसे बर्तन धोना, पोचा लगाना, कपडे धोना, कार धुलवाना, खाना बनवाना आदि / जो सीधा सीधा भ्रष्टाचार है / क्योंकि जनता के खून पसीने की कमाई सैलरी के रूप में उन कर्मचारियों को अदालत में काम करने के लिए दी जाती है / जज साहिबान के घरो में होम peon की सुविधा होने के बावजूद इस पर कोई ठोस कार्यवाही नही हुई है / उनसे नौकरी से निकालने, ACR ख़राब करने और नोटिस देने की धमकियाँ देकर ऐसे घरेलू काम लिए जाते है / 
भाई भतीजावाद से भी अदालते पीछे नही हैं / अदालतों में जजों और कर्मचारियों में भाई भतीजावाद में भर्तियाँ की भरमार हैं /अगर स्वतंत्र जांच करवाई जाये तो दूध का दूध पानी का पानी सामने आ जायेगा / न जाने कितने जज साहिबान के बच्चे, भाई भतीजे रिश्तेदार आपस में अदालतों में जज के रूप में काम करते हैं / दूसरी तरफ अदालतों में कार्य कर रहे जज साहिबान के बच्चे और रिश्तेदार भी वकीलों के रूप में अदालत में कार्य करते हैं / जिसे आप अंकल जज सिंड्रोम के नाम से भी जानते हैं / सब कुछ जानते हुए भी सब खामोश हैं /
हमारा मानना है कि जब निचली अदालतों के फैसलों को ऊँची अदालतों द्वारा पलटा जाता है तो फैसला करने वाले जजों का नार्को टेस्ट करवाया जाना चाहिए / देश भर की अदालतों में भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है यह बात किसी से छुपी नही है /
         जैसे :-पंजाब में जजों की भर्ती में पेपर लीक करके करोड़ो रूपये के वारे न्यारे करने के केस सामने आये / जैसे रवि सिधु काण्ड, और अभी अभी पंजाब और हरयाणा हाई कोर्ट के जज बलविंदर शर्मा (रजिस्ट्रार रिक्रूटमेंट) पेपर लीक काण्ड / मधु कौड़ा रिश्स्वत काण्ड में करीब अरबो रूपये का भ्रष्टाचार हुआ लेकिन सजा सिर्फ 3 साल / केस निपटने में कई साल लगे / दूसरी तरफ एक मामूली छीना झपटी के केस में सजा अधिकतम 10 साल की सजा का प्रावधान है / हर बार गरीब को ही सजा ज्यादा भुगतता है /यह कानूनी भेदभाव क्यों ? 
             लालू प्रसाद यादव के चारा घोटाले केस में बरामदगी बहुत मामूली दिखाई गयी / और अब भारी जुर्माने किये जा रहे हैं / इन केस में सरकार के और पार्टी के खर्चे का अंदाज़ा लगाना मुश्किल है / जज हेमंत गोपाल रिश्वत आरोप, निर्मल यादव जज का केस, जस्टिस हेमंत गुप्ता के परिवार पर आरोप और 1029 वकीलों द्वारा जस्टिस हेमंत गुप्ता की impeachment के लिए एप्लीकेशन देना अदालती भ्रष्टाचार को दिखाते हैं /
          बोफोर्स तोप घोटाले में करीब 62 करोड़ के घपले का आरोप था जिसमे सीबीआई  ने एक RTI के जवाब में माना है के करीब 525 करोड़ रूपये तो केस के ऊपर खर्च हो चुका है / और अभी सजा किसी को नही हुई / नतीजा जीरो है / जिसके कारण खरबों रूपये का राजनितिक और आर्थिक नुकसान देश को हुआ /
         अभिनेता सलमान खान के एक्सीडेंट केस में निचली अदालतों द्वारा   जरूरत से ज्यादा देरी दिखाते हुए उसका फैसला 13 साल बाद आता है / और इस दौरान महत्वपूर्ण गवाहों की रहस्यमय मौत पर अदालत ने संज्ञान नही लिया / और जब फैसला आया तो हाई कोर्ट द्वारा जमानत देने में नियमो को ताक पर रख कर जरूरत से ज्यादा तेजी दिखाई गयी / बिना जजमेंट के कॉपी के उसे कुछ घंटो में जमानत मिल जाना अदालतों के काम पर सवालिया निशान है / 
        पांच लोगो के गैर इरादातन हत्या के मामले में बरी होना और एक हिरन के मारने पर पहले पांच साल और फिर तीन साल की सजा होना साबित करता है कि इंसान की जान और इंसानियत की कीमत कितनी कम है /
         जय ललिता केस में भी देश की सबसे बड़ी बरामदगी हुई / निचली अदालत  द्वारा सजा होना और फिर हाई कोर्ट द्वारा बरी होना / और बाद में सुप्रीम कोर्ट द्वारा साथी को सजा होना समझ से बाहर होता है कि किस जज ने फैंसला सही किया किसने गलत ? किसी भी जज की जवाबदेही तय नही की गयी / जो सीधा सीधा जजों के काम करने के तरीके पर सवालिया निशान है ?
           आज भी अदालत को इन्साफ का मंदिर कहा जाता है परन्तु अक्सर देश के सबसे बड़ी अदालत मानयोग सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा चीफ जस्टिस और हाई कोर्ट और निचली अदालतों के जज  साहिबान पर भ्रष्टाचार के आरोप देश की जनता के मन में जजों की ईमानदारी पर सवाल पैदा करते हैं / जिसके सबूत श्री प्रशांत भूषण वकील साहिब द्वारा दिए गये हैं /
           मौजूदा हालातों में देखा गया है कि देश के जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप के बारे में पूछने पर बड़े और नामी वकीलों जैसे श्री प्रशांत भूषण आदि वकीलों को न केवल अपमानित किया जाता है बल्कि उन पर भारी जुरमाना लगाकर डराया भी गया / ताकि भविष्य में जजों के भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई आवाज न उठा सके / जो आवाज उठाते हैं उनपर contempt ऑफ़ कोर्ट के केस लगा दिए जाते हैं / यहाँ तक कि अदालत के कर्मचारी हरमीत सिंह पर भी अदालतों के भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने पर contempt ऑफ़ कोर्ट का केस चल रहा है / जस्टिस कर्णन, जज राजेंदर कुमार श्रीवास, वकील और आम जनता आज contempt ऑफ़ कोर्ट के केस के डर के कारण अदालती भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज नही उठाते /

सुधार :-
          अदालत में सुनवाई के दौरान ऑडियो विडियो रिकॉर्डिंग शुरू की जाये जिससे अदालतों में फैली कमियों और हर तरह के अदालती भ्रष्टाचार को तक़रीबन 70% तक कम किया जा सकता है /
जो लोग बिना वकील के अदालतों में खुद (in person) अपना केस लड़ते हैं उनको प्रोत्साहित किया जाना चाहिए / अक्सर देखा गया है कि जब कोई अपना केस खुद लड़ता है तो उसे कुछ  जज और वकील साहिबान द्वारा डराया धमकाया जाता है /
           अदालतों में लागू CrPC, CPC, IPC अंग्रेजो द्वारा 1860 में लागू की गयी थी / वर्तमान परिस्तिथियों के अनुसार इनमे बहुत बड़े पैमाने पर बदलाव और सुधार किया जाना चाहिए / समयानुसार कानूनों में बदलाव भी होने चाहिए /
         जजों और वकीलों की जवाबदेही तय होनी चाहिए / ताकि भ्रष्टाचार पर रोक लगायी जा सके / इस काम में इमानदार वकीलों और जज साहिबान को आगे आना चाहिए / वकीलों द्वारा ली जाने वाली फीस की रसीद भी मुवक्किलों को देने का प्रावधान होना चाहिए /
         न्यायिक केसो में एक समय सीमा निर्धारित करनी चाहिए / देरी होने पर देरी का स्पष्ट कारण  दिया जाना चाहिए / ताकि लोगो का ख़त्म होता विश्वास अदालतों पर बना रहे / तारीख पर तारीख सिस्टम में कानूनी बदलाव होने चाहिए /
         ह्यूमन राइट्स की रक्षा जमीनी स्तर पर होनी चाहिए / मानवाधिकार का व्यापार बंद होना चाहिए / ह्यूमन राइट्स कमीशन में राजनितिक और नाकारा व्यक्तियों की नियुक्ति बंद की जाये /
        जात पात और धर्म की जगह प्रेम और भाईचारे के दंगे होने चाहिए / ताकि लोग प्यार से एक दुसरे के साथ रह सके /
        हर सरकारी विभाग में पब्लिक द्वारा मोबाइल रिकॉर्डिंग को कानूनी मान्यता दी जाये / सरकारी कर्मचारी को भी अधिकार दिया जाये कि वो भी क्रॉस रिकॉर्डिंग करे ताकि कोई मतभेद या एडिटिंग की सम्भावना खत्म हो जाये / मौखित आदेश की बजाय लिखित या मोबाइल रिकॉर्डिंग आदेश जारी किये जाये /
पुरुष आयोग की स्थापना की जाये /
अदालत में केस झूठा साबित होने पर जांचकर्ता पुलिस, शिकायतकर्ता और झूठी गवाही देने वालो पर सख्त कार्यवाही का प्रावधान किया जाये /
मानयोग सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस श्री टी एस ठाकुर ने बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष को आदेश दिया था कि जून 2017 तक सभी वकीलों की डिग्रीयों की जाँच करके रिपोर्ट दी जाये / उस आदेश की अतिशीघ्र जांच शुरू करवाई जाये और जिन वकीलों और जज साहिबान की डिग्री जाली पाई जाती है उनपर कार्यवाही की जाये /
         ग्राम न्यायालयों की स्थापना मोहल्ला और पंचायत स्तर पर की जाये ताकि न्याय हर व्यक्ति तक आसानी से पहुँच जाये / और सस्ता न्याय सभी को समान रूप से मिल सके /
जजों की नियुक्ति पर्याप्त मात्रा में की जाये /
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA)और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) अपना मूलभूत काम करें / अन्यथा (NALSA) राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बंद किया जाये ताकि आम जनता के लाखो करोड़ो रूपये की बर्बाद न हों ? राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA)और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) के संरक्षकों (Patron-in-chiefs)  को पीड़ितों से सीधा मिलने का प्रबंध करें / 
          F.I.B. + फर्स्ट इन्वेस्टीगेशन ब्यूरो देश के  आम नागरिकों के ध्यान में यह लाना चाहती है की  कुछ राजनितिक स्वार्थ , कुछ धनाढ्य फायदे हेतु , कुछ  देश की जनता के नाम पर  लगभग सौ बार  संविधान का संसोधन किया जा चूका है  तो क्या इस संसोधन का फायदा देश के नागरिकों को हुआ भी है ?  इसपर भी  देश के पढ़ेलिखे  संभ्रांत लोगों को भी  आवाज उठाना राष्ट्र हित में ही होगा। 

HUMAN RIGHTS PROTECTION COUNCIL
FORUM FOR FAST JUSTICE, LUDHIANA
JUDGE ADVOCATE PIDIT ORGANISATION
DARK SIDE OF INDIAN JUDICIARY

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